Mihir ..........
बुधवार, 14 अगस्त 2013
हम अब भी गुलाम हैं !!
हमें आज़ादी मिले ६६ साल हो गए !
क्या " फेस बुक " पे स्टेटस अपलोड और देर रात की पार्टी को हम आज़ादी मान लें , हम मानसिक आज़ादी की आश में अब भी हैं , हम अंग्रेजियत की गिरफ्त में अब भी हैं , और रहेंगे भी ! चीन ने , जापान ने , रूस ने , कोरिया और जर्मनी ने अपनी भाषा से समझौता नहीं कर अपनी पहचान बनायीं !
हम अंग्रेजों के अनुयायी हो चले , बाबूजी , पापा से डैड बन गए , काका अंकल और मौसी अंटीबन गयी , हमारे सम्बन्ध भी बिलायती हो गयी , जय रामजी की अब हाय हेल्लो बन गए !
सच में हम आज़ाद हो गए !
न बारे बुजुर्गों की आदर की बंदिश न शिष्टाचार में बंधने की आज़ादी ! हम आज़ाद हैं , यही आज़ादी चाहिए थी हमें !
हम अब भी गुलाम हैं !!
सोमवार, 27 दिसंबर 2010
बिनायक सेन !! पहली नज़र में उन्हें उम्र कैद देना गलत लगता है , पर अगर कोई सों से ज्यादा CRPF के जवानों की जान लेने वालों की मदद करने का दोषी हो तो उसे सजा तो मिलनी हिन् चाहिए !! पर देश की दुर्दशा ये है की 200000 करोर के घोटाले वाले Raja और और रास्ट्र-मंडल खेल घोटाले के Kalmandi जिनपर रास्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए वो शान से हमें TV पे मुस्कुराते नज़र आते हैं !!
हमारे सिस्टम में , आर्थिक असमानता इतनी ज्यादा होती जा रही है की जिन्होंने सामंतवादी समाज को देखा भी नहीं वो भी अपना धैर्य खो के मओबादियों के साथ हो लियें हैं !! कुछ दिन पहले पुण्य प्रसून बाजपे की ब्लॉग में एक अच्छे इंजीनियरिंग के छात्र को आदिबसियों के साथ हो रहे अन्याय के बिरोध में माओबादी बनने की दिलचस्प लेख पढ़ा !! सच भी है !!
हम बिकाश की बात करते हैं , पर किसकी ? जो बिकसित हैं या उनकी जिसे अभी भी हम समाज के साथ जोर नहीं पाए !! पर हिंसा हर समस्या का अंतिम उपाय नहीं हो सकता , हम मओबादियों के किसी भी निर्दोष की जान लेने की घटना का समर्थन नहीं करते पे उनके इतने उग्र रस्ते तक जाने वाली मनोबृति के लिए समाज और सरकार दोनों को दोषी मानते हैं !
हमारे सिस्टम में , आर्थिक असमानता इतनी ज्यादा होती जा रही है की जिन्होंने सामंतवादी समाज को देखा भी नहीं वो भी अपना धैर्य खो के मओबादियों के साथ हो लियें हैं !! कुछ दिन पहले पुण्य प्रसून बाजपे की ब्लॉग में एक अच्छे इंजीनियरिंग के छात्र को आदिबसियों के साथ हो रहे अन्याय के बिरोध में माओबादी बनने की दिलचस्प लेख पढ़ा !! सच भी है !!
हम बिकाश की बात करते हैं , पर किसकी ? जो बिकसित हैं या उनकी जिसे अभी भी हम समाज के साथ जोर नहीं पाए !! पर हिंसा हर समस्या का अंतिम उपाय नहीं हो सकता , हम मओबादियों के किसी भी निर्दोष की जान लेने की घटना का समर्थन नहीं करते पे उनके इतने उग्र रस्ते तक जाने वाली मनोबृति के लिए समाज और सरकार दोनों को दोषी मानते हैं !
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